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आहड सभ्यता (उदयपुर)
उपनाम
बनास संस्कृति, ग्रामीण संस्कृति की सभ्यता, मृतकों का टीला
प्राचीन नाम
ताम्रवती नगरी, तौबावती, आघाटपुर, धूलकोट
नदी
आयड
4,000 वर्ष पुरानी
(1900-1200 ई. पूर्व)
खोज
अक्षय कीर्ति व्यास (1953 ई. में), रतनचन्द्र अग्रवाल (1956 ई. में)
उत्खनन
वी.एन. मिश्र व एच.डी. सौंकलिया (1961 ई.)
स्तर
- प्रथम स्तर- स्फटिक पत्थरों
- द्वितीय स्तर- ताँबे, कांसे व लोहे के उपकरण
- तृतीय स्तर- मृदभांड
मकानों की विशेषताएं
- नींव: काले पत्थर (शिष्ट पत्थर)
- दीवारें: धूप में सुखाई हुई ईंट और पत्थर
- छत: बाँस की छत पर मिट्टी का लेप
- फर्श: चिकनी मिट्टी और पीली मिट्टी
- पानी निकास: चक्रकूप पद्धति का उपयोग
कृषि और भोजन
- कृषि: आहड़ के लोग कृषि करते थे और अन्न का उत्पादन करते थे।
- अन्न: उच्च गुणवत्ता वाला चावल उगाया जाता था।
- भोजन पकाना: मकानों में कई चूल्हे मिले हैं जो संयुक्त परिवार व्यवस्था को दर्शाते हैं।
दैनिक जीवन और कला
- पशु: बैल की मूर्तियाँ मिली हैं।
- शव संस्कार: शवों को कपड़ों और आभूषणों के साथ दफनाया जाता था, जो मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास को दर्शाता है।
- हस्तशिल्प: तांबे के विभिन्न उपकरण, मणियाँ, धूपदानियाँ आदि बनाए जाते थे।
- व्यापार: विदेशों से व्यापार होता था, जैसा कि यूनानी मुद्राओं से पता चलता है।
- मृदभांड: लाल-काले रंग के मृदभांड बहुत प्रसिद्ध थे।
- अन्य उद्योग: रंगाई-छपाई, अनाज पीसना आदि।
तकनीक और औजार
- धातु विज्ञान: तांबे और लोहे के उपकरण बनाए जाते थे।
- तांबे की खदानें: क्षेत्र में 40 तांबे की खदानें थीं।
समाज और संस्कृति
- समाज: पितृसत्तात्मक और संयुक्त परिवार व्यवस्था थी।
- धर्म: मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास।
- कला: मिट्टी के बर्तन पर सुंदर चित्र बनाए जाते थे।
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